मेरे तारणहार....!!!
मेरे तारणहार... क्या वर्णन करूँ मैं तुम्हारा तुम तो हिमालय की चोटी पर खिले देवफूल जैसे हो। मेरी दृष्टि में तुम सरोवर में खिले कमल जैसे हो। मेरे जीवन का तुम वो सितारा हो जो बिन मांगे टूटा है मेरे लिए। मेरे लघु जीवन का तुम वरदान हो। मेरे दर्द का तुम विराम हो। डूब गई मैं समंदर में देख अपनी छाया नदियां और क्या चाहे इशारा। मैं तो टूटा प्याला थी, तुमनें मधु रख खूबसूरत कर दिया। मेरे विचारों को मान दे, मुझे उत्तम कर दिया। हृदय वेदना में तिल-तिल मर रही थी। तुमनें शब्दों की बौछार से भिगो शांत कर दिया। मोहपाश में बांध निरुत्तर कर दिया। संघर्ष पथ पर चलते-चलते खंडहर हो गई थी, तुमनें सहारा दे निहाल कर दिया। मेरी बेजान हँसी को खिला गुलाब कर दिया। मधुवन को छाती में छिपा निहाल कर दिया। अब कोई हक न मांगूंगी बस दर्द का निवाला मुझे दे देना। मेरा सुख का निवाला निगल लेना। मेरी ये इच्छा पूरी कर मुझे तृप्त कर देना। मेरी उषा की किरण बन निशा में धूल जाना। मेरे मौन में चल बस मुझे गुदगुदाना। मुझे कृतज्ञ कर देना। तुम्हारा इंतजार करूँगी बस अपनी जीवन समाप्ति तक...