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मेरे तारणहार....!!!

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मेरे तारणहार... क्या वर्णन करूँ मैं तुम्हारा तुम तो हिमालय की चोटी पर खिले देवफूल जैसे हो। मेरी दृष्टि में तुम सरोवर में खिले कमल जैसे हो। मेरे जीवन का तुम वो सितारा हो जो बिन मांगे टूटा है मेरे लिए। मेरे लघु जीवन का तुम वरदान हो। मेरे दर्द का तुम विराम हो। डूब गई मैं समंदर में देख अपनी छाया नदियां और क्या चाहे इशारा। मैं तो टूटा प्याला थी, तुमनें मधु रख खूबसूरत कर दिया। मेरे विचारों को मान दे, मुझे उत्तम कर दिया। हृदय वेदना में तिल-तिल मर रही थी। तुमनें शब्दों की बौछार से भिगो शांत कर दिया। मोहपाश में बांध निरुत्तर कर दिया। संघर्ष पथ पर चलते-चलते खंडहर हो गई थी, तुमनें सहारा दे निहाल कर दिया। मेरी बेजान हँसी को खिला गुलाब कर दिया। मधुवन को छाती में छिपा निहाल कर दिया। अब कोई हक न मांगूंगी बस दर्द का निवाला मुझे दे देना। मेरा सुख का निवाला निगल लेना। मेरी ये इच्छा पूरी कर मुझे तृप्त कर देना। मेरी उषा की किरण बन निशा में धूल जाना। मेरे मौन में चल बस मुझे गुदगुदाना। मुझे कृतज्ञ कर देना। तुम्हारा इंतजार करूँगी बस अपनी जीवन समाप्ति तक...

मोहपाश...!!

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अपने मोहपाश में क्यूँ बांध रहे हो तुम/मुझे। मेरी कीमत तो शून्य है, जली चीजों की तरह। मैं क्रोध में उबलकर शांत हुई हूँ, तुम्हारी तरह। मेरी आँखों मे अब कोई ख़्वाब नहीं सिर्फ कुछ आंसू, और उदासी भरी है, इनमें। मैं एक गहरा अंधकार हूँ, तुम इसमें मत डूबना। बस मुझे प्रेम करने देना सदियों तक। तुम्हारे हृदय में कोई अभिमान  नहीं तुम स्वर्ण हो.. चंदन हो.. राजमुकुट में लगा। तुम्हारा प्रेम तो  निर्मल है, चाँद सा शीतल है। जिसमें मैं बह रही हूँ। सुनहरी होकर। तुम मुझसे रोज मिलना मेरी कविता की धड़कन बनकर। मैं तुमसे कुछ नहीं पूछुंगी न तुम पूछना। बस मेरे हृदय में रहना ख़्वाब बनकर। इस जन्म न मिल पाऊंगी अगले जन्म का भी वादा नहीं बस तुम्हें यूं ही प्रेम करती रहूँगी सदियों तक। तुम कान्हा बन जाना मैं राधा बन जाऊंगी तुम बस बंसी बजाना मैं उसमें खो जाऊँगी। बिन कुछ कहे, बिन कुछ बोले तुम अपने सारे दर्द मुझे दे देना मैं अपने दर्दो में घोल कर सारा दर्द पी जाऊँगी तुम बस अपने चहरे पर मुस्कान सजाये रखना। मैं ये देख जी जाऊँगी। खुशबू बन उड़ जाऊंगी। पूर्ण हो जाऊँगी!! ...

यूं ही तुम्हें पढ़ती रहूँगी सदियों तक...!!

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सुनों... बीती रात को सिरहाने मत रखना। पीछे छुटा कल भूल जाना। तुम्हें नभ पर चमकना है। अपना नया अनुभव लिखना है। एक समृद्धि तुम्हारा इंतजार कर रही है। कैसी भी परिस्थिति हो तुम बदलना नहीं। मौसम बदल रहा है। जुदा क्यारियों में अब फूल खिलेंगे। हर फूल से सुगन्ध आएगी। जो तेरी देह को खुश्बूदार मन को आनंदित करेगी। तुम तो बिल्कुल संगीत जैसे हो हर सुर में ढलते हो, हर राग में मचलते हो, हर वाद्य में सुरीले हो जाते हो। कभी मन करे रोने का तो आ जाना गले मिल रो लेंगे। कभी मन के अंधेरी रातों में तारें गिनने का तो आ जाना मिलकर उस ध्रुवतारें को भी ढूंढ़ लेंगे। कभी मन करे यूँ ही शिकायत करने का तो आ जाना सारे गीले-शिकवे नदी में बहा आएंगे। तुम यूँ ही लिखते रहना मैं यूँ ही पढ़ती रहूँगी सदियों तक  हर रात, हर दिन यूँ ही!!
चोट लगती है दिल पर कभी तो क्या हुआ, तुम उदास मत होना। गज़ल, चुटकुलों से दिल बहलाना। अपना दर्द किसी अपने से बांट लेना। अपने शौक जिंदा रखना। आंखों में नमी को जगह मत देना। बरसात में भीग जाना। आकाश से गले मिल लेना। खुशियों की राह में जो बने रोड़ा, उसे खाई में धकेल देना। कोई कुछ भी कहे सीने पर पत्थर न रखना। जीवन की धूप तो यूं ही सुलगती है, उसे काली बदली से मिलवा देना। अपना अंतर्मन दुखी मत करना, मौसम का जोड़-घटाव समझ उसे जमीं में दफ़ना देना तुम। सुनो.... तुम तो बगीचे की शान हो... गुड़हल की मुस्कान हो... पलाश की जान हो... गुलाब से महकते... चंपा-चमेली की... सादगी से पूर्ण हो। सुनो.... दिल मे बरसात हुई हो तो... आंखों से बाहर बाहा देना। एक पन्ना लिख कर... किसी पेड़ के नीचे रख आना। ज़ख्मों की सतहों में खुद को मत दबाना तुम। फिर कोई यादों की गठरी... खुली है शायद। अधूरे वाक्य कंठ में ... जमे है शायद। चिर-परिचित घाव... हरे हुए है शायद। तुम काली रात में... खुद को न रुलाना कसम है तुम्हें हमारी!!

मेरे मन के मीत... मेरी प्रीत तुम हो...!!!

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अगर इस क्षण मैं तुम्हें सोचू तो तुम... मेरे लिए पारस हो। तुम संघर्षरत... मेरे हृदय का लाल रंग हो, जिससे मेरी सांसे चलती है। तुम बहुत नर्म हृदय... और प्रेमल हो। जैसे फूल से भंवरा... प्रेम करता है। तुम बिल्कुल वैसे हो। तुम मेरे चंद्राकार घाव पर... मरहम हो। जैसे ठंडी रातो में मैंने... गर्म मखमली शाल लपेट लिया हो। तुम मेरी आशा की किरण हो, जो हर परिस्थिति में, मेरी सहायता करता है। तुम मेरे नेह से जुड़े... मेरा स्नेह हो... जिसे मैं हर पल गुनगुनाती हूँ। तुम मेरा सावन, मेरा भादों भी तुम... तुम मेरे आंसू, मेरी मुस्कान, मेरी हँसी... सबमें शामिल हो। जैसे फूलों में, खुशबू शामिल है। तुम मेरे मन के मीत... मेरी प्रीत हो। मेरी सांसे हो, मेरा रक्त हो, मेरे कण-कण में तुम शामिल हो!!

संदेह.......

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कितना संदेह करते हो तुम मुझ पर मैं तो दिन भर सूर्य के साथ भटकती हूँ, दुःख की शाला के फेरे लगाती हूँ, आंखों से कंकर बिनती हूँ, एक जरुरी आह भी नहीं निकालती अपनी ज़बान से फिर भी तुम मुझ पर संदेह करते हो, बोलो तो भला क्यूँ?? तुम्हारे संदेह का कारण? कहीं मेरी कटीली आंखे तो नहीं? मेरे चेहरे पर खिलती कंवल सी पंखुड़िया तो नहीं? मेरे लहराते केश तो नहीं? मेरे बदन से आती सौंधी महक तो नहीं? मैं तो तुम्हारी आज्ञा से जंगली फूल बन... तुम्हारा घर संवारती हूँ। तुम्हारे हर निर्णय को जानकी बन स्वीकारती हूँ। तुम धरा से पूछ लो मैं तो अम्बर का हर कहा प्रसन्न्ता से मानती हूँ!!

एहसास....!!!

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जिंदगी की किताब के पन्नें भर गए, पर दिल खाली रह गया। एहसास में हर रंग घुला, पर अब एहसास श्वेत हो गया। देखते-देखते वर्ष बीत गए, पर समय अब भी वही ठहरा है! गुल्लक भर ख़्वाब, सुबह होते ही बिखर गए। धूल चढ़ा आईना जो देखा, सूरत अपरिचित लगी! सूरज की रौशनी में दिन जल गया, रात के अंधेरे में नींदे जल गई, ये देख आदमी पथ भटक गया। असली पोशाक उतार नकली पोशाक पहन कठपुतली का खेल दिखाने चल दिया!