संदेश

उपासना

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शिव की उपासना करती पार्वती कभी थकी नहीं। हिमखण्डों में श्वेत हो लीन रही शिव में। चंद्र से मुख पर मणियों सी आभा लिए। उर्मिला सी उपासना जिसे अपने आँसुओ को भी बहाने की इजाज़त न थी। बस इंतजार में राह ताकती रहती थी। स्त्री उस मूसलाधार बारिश जैसी है, जो प्रेम से धरा को सींचती है। खुद के आँसुओ से। राधा का प्रेम राधा का वियोग जैसे धैर्य ने खुद उपासना की हो देवों की, विधि के विधान की। उपासना प्रेम की... एक जटिल और सरल प्रक्रिया स्त्री और पुरुष का अर्धनारीश्वर स्वरूप। शक्ति (स्त्री) संग्राहक (देव) का प्रखर प्रेम। जैसे आसमान से नीले बादल बरस कर धरा को हरयाली चादर ओढ़ा कर, सारे रिक्त स्थान भर देते है। शक्ति कभी शिव की उपासना करती है तो कभी सर्वमानिनी अनेक रूपों में शिव के साथ संसर्ग कर रति को धन्य करती है। यही शक्ति सावित्री बन यम को पराजित भी करती है। शक्ति स्वयं कहती है। पुरुष का तेज जो गर्भाधान करवाता है, वह भी शक्ति का ही एक अंश है। स्त्री तत्व को संबोधित करती शक्ति सजल नयनों से नीर बहाती वाणी में मधुरता धैर्य जिसका गहना पर एक जटिल मौलिक रचना जिसमें स

खारा एहसास

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मन की दहलीज़ में विचारों का अंबार लगा है। खारे मोतियों की कतार में आंखे लाल हो गई। रंगीन विचार कब श्वेत हो गए पता ही न चला। कोमल मन आहत हो चुका है। गुजरे कल में रोता आज में मौन हो चुका है। खनकता स्वर बावला मन कब करवटें बदल  बीतें कल में खोया कुछ पता नहीं चला। मधुमास बीता फिर पतझड़ आया। कुछ एहसास श्वेत, कुछ एहसास पीले हो सूखे पत्तों संग उड़ गए रेतीले आसमान में। झुलसा एहसास झुलसा मन झुलसा तन शून्य को ताकता रह गया। एक विचार आते एक विचार जाते मन को खाई की सैर करा गए।

हंसी

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मैंने कहा फूलों से तो वो खिलखिला कर हंस दिए। कितना अच्छा गाना है कुछ याद आया इस गाने के बारे में। Hi मैं हूँ नीलम अग्रवाल आज इस हंसी पर एक कविता लिख रही हूं आप सब पढ़ियेगा जरूर और बताइएगा भी जरूर की कैसी लगी आपको ये कविता। ......हंसी...... अपने गम भुलाने को एक हंसी कानों तक फैल गई, आंखों के इर्द-गिर्द लकीरों में खो होंठो पर बहक गई। हंसी मानो देह के भीतर का शोर या मानो भीतर का आनंद। भीतर जैसे कुछ भरा-भरा कुछ खाली-खाली भीतर जैसे कोई बच्चा कभी रो कर हंस रहा हो तो कभी रोते-रोते हंस रहा हो। हंस-हंस सबको आकर्षित कर रहा हो। हंसना कितना अच्छा होता है। सारे विचार ठहर जाते है। अपने आप मे खो जाते है।। जापान में हंसते हुए बुद्ध होतेई की एक कहानी है। होतेई की जिंदगी का उद्देश्य ही बस हंसना था। वह एक स्थान से दूसरे स्थान, एक बाज़ार से दूसरे बाज़ार घूमता रहता। वह बाजार के बीचों-बीच खड़ा हो जाता और हंसने लगता- यही उसका प्रवचन था। उसकी हंसी सम्मोहक थी, एक वास्तविक हंसी, जिससे पूरा पेट स्पंदित हो जाता है। वह हंसते-हंसते जमीन पर लोटने लगता। लोग उसके आस-पास जमा हो जाते, और वे

ये क्या किया

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अंधेरे से ठीक पहले का उजास.. ढलती शाम में मिलती जैसे रात..। सुंदर कलाकृतियों में मिलते जैसे रंग..। मेरी अंदरूनी खुशी के तुम प्रेरणास्रोत हो। मेरी मुस्कुराहट का मूल्य शून्य था, तुमनें खरीद बहुमूल्य कर दिया। धैर्य धीरे-धीरे खत्म हो रहा था, तुमनें अपना समय मिला धैर्यवान कर दिया। मधुर संगीत सुनने को कान तरस गए थे, तुमनें अपनी बातों का संगीत मिला मौसम ख़ुशगवार कर दिया। मेरे फैसले में अपनी रजामंदी मिला मुझे अपना कर्जदार कर दिया। बोल तूने ये क्या किया!

आत्मविश्वास का जादू

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अगर आपकी योजना असफल होती है तो अपने विचारों को थोड़ा विराम दे व्यायाम करवाएं। जरूरी नहीं हर वक्त कुछ न कुछ सोचा जाए। जब कुछ समझ न आये तो कुछ वक्त उस काम  यूं ही  छोड़ दे। आप देखेंगे कि उस काम का कोई न कोई हल खुद ब खुद निकल आया है। आपका मस्तिष्क आपसे ज्यादा सजग है उसे बस एक संदेश भेज कर देखिए वो कैसे काम करता है। आत्मविश्वास वो नहीं हर काम को हाथ डाल आजमाया जाय आत्मविश्वास वो है जो काम की बारीकी को समझ किया जाता है। मतलब उस विषय के बारे में ज्ञान हासिल कर फिर वो काम कीजिये। फिर सफलता 99% होगी और असफलता सिर्फ 1% और आपका आत्मविश्वास बढ़कर दुगना हो जाएगा। अपनी खोखली मानसिकता से बाहर निकलिए जहाँ प्रश्न से पहले उत्तर ढूंढा जाता है। पहले प्रश्न ढूंढिए फिर उसका उत्तर। अक्सर उत्तर प्रश्न के अंदर ही छुपा रहता है। जोखिम हर काम में होता है। जहाँ जोखिम नहीं वहाँ सफलता भी नहीं याद रखिये। जिस प्रकार सड़क पर चलने में जोखिम है। लेकिन सड़क पर चले बिना आप आप न ऑफिस जा सकते है न घर वापस आ सकते है। मान लीजिए आपके सामने एक रेखा खींची हुई है। बस उस रेखा के सामने एक बड़ी रेखा खींच दीजि

लफ्ज़ो के मोती: अजनबी कौन हो तुम......???

लफ्ज़ो के मोती: अजनबी कौन हो तुम......??? : तुम कौन हो नहीं जान पाई मैं सब जानकर भी लगता है। नहीं जान पाई मैं तुम्हें अजनबी तुम कौन हो बड़े अपने से लगते हो ढेरों बातें...

लफ्ज़ो के मोती: ख़त

लफ्ज़ो के मोती: ख़त : एक खत लिखा है, इत्र में भिगो मन की स्याही से। कोरे पन्नों पर, प्यार की डाल पर गुलाब खिला एक माला बनाई है। व्यस्त जिंदगी में ये विरा...