तेरी परछाई...बिल्कुल तुझ सी...!!!
तुझे क्या हुआ? मुझे बता... तेरी चुनर किसने खींचीं... मुझे बता । तू क्यूँ? जीती जागती चिता बन गई... आ उसकी चिता सज़ा दे... जिसने तेरी चुनर खींचीं...। तू रो मत... तू पाक थी, है, और रहेगी, हमेशा...। वो नपुंसक था...। जिसने तेरी चुनर खींचीं... भूल जा वो दर्द, वो सितम... तू तैयारी कर ले नई राह की... नये भविष्य की । जो बाहें फैलाये तेरी प्रतीक्षा कर रहा है...। आ उनको सबक सिखाते है...। जिन्होंने... हाथों में त्रिशूल थमा महान बनाया... फिर लाज़... शर्म... हया... के गहने तले हमें दबाया... हमारा तिरस्कार किया... हमें आईने में कैद कर... हमारा शोषण किया...। पूरी पीढ़ी का जन्म दाता बना... हमें दूध के कटोरे में डूबाया...। हमारे जन्मते ही हमें खोखले रीति- रिवाजों की भेंट चढ़ाया...। कही बुर्का...कहीँ घूँघट... ओढ़ाया... और खुद की पैदाइस के लिए इस्तेमाल किया...। हमें चूल्हें - चौके में झोंक खुद शासक बना...। हमें पराश्रित किया...। आ... तू रो मत...उन्हें सबक सिखाते है...। जिन्होंने हमें रुलाया...। आ शिक्षा तले शस्त्र उठाते है...। बिन्दी, पायल, चूड़ी, नथनी, बिछिया... सब स...