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ऐ जिंदगी तू ऐसी क्यूँ .........है।।

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 जिंदगी कुछ कड़वी, कुछ खट्टी, कुछ मीठी, रेगिस्थान में भटकते रेत सी जिंदगी, कभी आँधियों में उड़ती रेत सी जिंदगी, सांसो के पिंजरे में कैद जिंदगी, तड़पती है.... घुटती है..... मचलती है...... रोती है...... पर मौत नसीब नहीं, दफ़्न ख्वाइशों की जिंदा मिशाल बन अश्क़ो में बहती है, सिसकती है। जिंदगी ऐ जिंदगी हमें इतना क्यूँ रुलाती है। ऐ जिंदगी हमें इतना क्यूँ तड़पाती है। हम तो तेरे गुलाम है। एक हँसी को हमें इतना क्यूँ तड़पाती है। ऐ जिंदगी जिस्म को तो आदत है। नंगे पांव अंगारों पर चलने की, पर रूह अश्क़ो में पिघल कर रोती है। तड़पती है चैन की तलाश में बैचेनियाँ पलती है। ख्वाइशों के दंगल में उम्मीदें तड़पती है। एक सिरहन सी उठती है, एक आह सी निकलती है, और नम आंखो के किनारे कुछ मोती आ लुढ़क जाते है। कुछ कोनो पर ठहर जाते है। कुछ होठों की अंदर घुट मर जाते है, कुछ रूह को मार कर जिंदगी जीते है, कुछ वक़्त के हासिये पर मिट जाते है, ऐ जिंदगी तू ऐसी क्यूँ है, ऐ जिंदगी तू ऐसी क्यूँ है??

राधा-कान्हा......

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 न पाए चैन उर मेरा ठिकाना ढूंढता है। क्यों नयन भर ताक लेने का बहाना ढूंढता है। क्यों भरे उर कोष में आंसू बिछाए पाँवड़े पलकें तुम्हारी नित्य परछाईं दीवाना ढूंढता है। क्यों? मेरी बोझिल सांसे ....भर आये यू ही बैठे-बैठे नैना.... ....तेरी याद जो सताये तो तेरा मुखड़ा निहारूँ....तेरा रस्ता देखू.....तेरा ख़्वाब सजाऊँ...... यू ही बैठे-बैठे तेरी तस्वीर पर सर रख सो जाऊँ....... तेरी प्यार की .... .....बारिश में भीग जाऊँ......बस इतनी दुआ है....... तेरे प्यार में तुझ संग जी जाऊँ....... तुझ संग मर जाऊँ..... तू आदि.......💐 तू अनन्त......💐 तू जिस्म......💐 तू रूह......💐 तू ख्वाइशों का दर्पण.......💐 तू इश्क़ का समर्पण........💐 तू सच्चाई का फ़रिश्ता......💐 तू चाहतों का फ़रिश्ता.......💐

मेरी नज़रो में तुम बसे तेरी नज़रो में मैं बसी.....

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 कोरे पन्नों पर मेरे लफ़्ज भीगते है........ मेरे अल्फाज़ो पर तेरा जादू चलता है........ मेरी नज़रो के तुम सलीके....... मेरे अश्क़ो के तुम पैबंद........ मेरी रूह के तुम चैन........ भरी बरसात में मोगरे के गीले बूटे से तुम और मैं.......चल रहे थे यू ही किसी रास्ते पर जाना कहाँ था दोनों को मालूम नहीं पर दोनों खोये थे......... सड़क किनारें बिखरे पलाश के सुर्ख लाल दहकते फूलों में..... आसमां से छिटकती बूंदों में....... ढलते शाम में पेड़ो की ओट में छिपते सूरज की लालिमा में.......एक दूसरे का हाथ हाथों में लिये हुए,  कुछ ख़मोशी समेटे हुए,  कुछ मदहोशी लिए हुए, बस खोये थे एक दूसरे में......... ये बहकी सी शाम, ये लहकी सी रात, ये महकी सी सुबह, "मैं उसकी महोब्बत में महकी हूँ मैं भीग के उसके प्यार की ओस में वो पूरा बरस जाता तो न जाने क्या हो जाता" कहाँ-कहाँ छिपाऊ अब मैं उसकी चाहत का हिसाब.......!!!

मेरे हर एहसास में तू छिपा........

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 तेरे एहसास में जो मिला मेरा एहसास तो इस कदर दुनिया से बेख़बर हो गए हम की हमें अब न दिन का पता चलता है न रात का बस तेरी यादों के सहारे अब ये दिन ये रात कटते है अपनी तन्हाइयों में हम अक्सर तुझसे नजदीकियां बढ़ाते है और तेरी बातों को गले से लगा कर सो जाते है तेरे होंठो की मदहोशी के कायल है तेरे अल्फाजों के कायल है तेरे एहसास से महोब्बत की है तेरे जज़्बात से महोब्बत की है तेरे महकते अल्फाजों से महोब्बत की है जो तुमने हँस कर दिया है तुमसे मिलना तो एक ख़्वाब सा लगता है इस लिये तेरे इंतज़ार से भी महोब्बत की है मेरे पलकों के चिलमन में तेरे ही ख़्वाब सजे है मेरी सांसो की महकती फिजाओं में तुम ही फिर रहे हो मेरे होंठो की बिखरी लाली में तुम ही मुस्कुरा रहे हो मेरे हर अंग में तुम ही खिल रहे हो मेरे चेहरे पर चढ़ा ये सिन्दूरी रंग भी तेरा है मेरे दर्पण में रूप भी तेरा सजा है मेरे आँगन में गुलाब भी तेरे नाम का खिला है मेरे आँगन के धुप में भी तुम छाया में भी तुम मेरी हर रात में तुम दिन में तुम मेरी दोपहर भी तुम शाम भी तुम अब और क्या कहूँ मेरा तो जीना भी तुमसे मरना भी तुमसे मेरा त

राधा कान्हा प्रेम रस.......

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"निशब्द" हो जाती हूँ, कान्हा तेरी मुरली की तान सुन....... चाँद-तारों की मुझे जरूरत नहीं, मुझे तो बस तेरे प्यार की बेसुमार दौलत चाहिए, दिल भरता नहीं तेरी तस्वीर से, मन करता है चुरा लू किस्मत की लकीर से, तेरी महोब्बत में सांवरे मेरा रूप निखरा है, मेरी हथेली में सांवरे तेरा रूप सजा है, झूम लू तेरी बाँहो में जो तू एक बार आ जाये, जी लू हजार बार जो तू एक बार आ जाये, मेरे होंठो से तेरी ही महक आती है, मेरे होंठो से तेरे ही सुर निकलते है, क्या बताऊँ......सखी रे........ सजन संग कैसे कटी मेरी रात....... कैसे उलझी लट कैसे उलझी अंखिया....... कैसे कहूँ मन की बतियां....... कुछ मैं उलझी कुछ श्याम....... बैरी ने खोल दीनी अँगिया........ तन खोला...... मन खोला...... अंग-अंग खोल समाय गयो श्याम...... कैसे कहूँ मन की बतिया सखी रे........ भिज गयी...... भिजाय दइ..... भरी रस की पिचकारी...... सब लूट गयो बैरी...... कैसे कहूँ...... का से कहूँ मन की बतियां सखी रे........ कैसे कहूँ....... मंदिर मिलन मास लगता है। प्रिय खास, नैन में समा के पीर क्यूँ जागते हो, कारे कजरारे नैन घ

मेरे मन ये बता किस और चला है तू.......

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कच्चे धागों में उलझा मेरा मन तू ये बता, क्या पाया क्या खोया है तूने, बस तन में रहा और सांसो से चला है, जीवन की पगडंडी पर ,अक्सर कंटीली झाड़ियों में अटक कर रोया है, मधु की तलाश में अक्सर ही गैरो की महफ़िल में भटक कर भी अकेला ही रहा है, जीवन सफ़र अब भी बहुत लंबा लग रहा है, खोखले रिश्तों में अभिमन्यु सा फंसता लग रहा है, आसमां से गिरती रात में चादर में सिमटा ख़्वाबो की दुनियां से सुकून चुराता सा लग रहा है, खुरदुरी दुनियां से अपना हिसाब मांगता सा लग रहा है, सागर की लहरों से टकराकर अपनी जीवन नइया सम्हालता सा लग रहा है, उदास वादियों में तेरा गला रुंधा आवाज़ खोई सी ला रही है, टिक-टिक करती घडी की सुइयां भी अब तुझे डराती सी लग रही है, तन्हाई के आलम में पलकों को आंसुओ में दफ़्न करती सी लग रही है, आहिस्ता-आहिस्ता ये रात ढल रही है, कई अनसुलझे सवालात में ये सिसक- सिसक रो रही है, कच्चे धागों में उलझा मेरे मन ये बता तू किस और चला है तू.......किस और चला है तू........!!!

कान्हा संग राधा.....राधा संग कान्हा.........

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क्या लिखू तेरी तारीफों में....अब शब्द कम पड़ रहे है.......... तेरी तारीफों में अब हम कम पड़ रहे है....... इश्क़ का परिन्दा मुझ से उड़ कर तुझ पर जा बैठा है....... तेरे इक भरोसे पर मेरा हो बैठा है...... बना दे नसीब ऐ खुदा थोड़ी सी इनायत कर दे जो मांगी थी जो दुआ कुबूल कर ले उनके आसरे पर जिंदगी की रौनके नसीब कर दे.......... तेरी महोब्बत में चुपचाप ये जिंदगी गुजार देंगे.......तेरे कदमो तले बहारो के फूल बिछा देंगे.......... दिल की बात होंठो से न कह पाएंगे बस निगाहों से बयां कर देंगे........ उनके हर ज़ख्म पे होंठो से होंठ मिला सारी मधुशाला पी जायेंगे.....उन्हें अपने आंचल में छिपा सुकूं दे जायेंगे.......... उनकी सांसो से अब हमारी महक आती होगी हमें क्या पता हमें तो बस उनकी सांसो की महकती धड़कने सुनाई देती है........ उनके होंठो से निकलती हँसी सुनाई देती है...... ज़मी को बरसते बादलों का सुकूं .......है...... सागर को नदियां का सुकूं.......है....... आसमां को उड़ते पंछियों का सुकूं......है...... बागों को खिलती कलियों का सुकूं....... है...... पहाड़ो को गिरते झरने का सुकूं......है..