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बारीक़ रिश्तें.....

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बारीक़ रिश्तों की गहरी वेदना समझौतों की डगर पर चलता सफ़र है। मुस्कान के मुखोटे ओढ़ दुनियादारी निभाता है। उम्र के हर पड़ाव पर, खुद को अकेला पाता है। पहचान को तरसता, वजूद को ढूंढता भीड़ में अपने तलाशता है। बारीक़ रिश्तों की वेदना..... कंटीले झाड़ पर ऊगी कसैले फूलों सी होती है। मधु में लिपटे दर्दीले जहर सी होती है। जिसे घूंट-घूंट पी इंसान, रोज मर-मर जीता है। बारीक़ रिश्तों की भोर. धुप में चल, छांव में रोती है। बारीक़ रिश्तें तस्वीरों में मुस्कुराते..... रद्दी कागज़ से उड़ कौने में वक्त बिताते है। वक्त के पायदान पर लुढ़क, शाख़ से टूटे पत्तो से भटकते है। बारीक़ रिश्तें जीवन की पाठशाला में पकते, अम्बर से गिरते तारों से, आश्चर्य-बिम्बों से सजते मन के कब्र में दफ़्न होते है!!

अपनी जीत पक्की करो आत्मविश्वास से...!!

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निराश हुई जिन्दगी का मेहनताना क्या है? शायद सिर्फ गम, आंसू, खुद को कोशते लफ़्ज इससे क्या होगा जिन्दगी ठीक हो जायेगी क्या? नहीं न,, कुछ खेल नसीब का तो कुछ खेल हमारे डर का, आलस का होता है। बदले में मिलती है, निराशा। चलो उठो अश्क़ो को पोछ मुस्कुराओ। जो बीत गया वो कल था आज नहीं खुद को एक मौका देकर देखो तुममें काबिलियत अब भी बहुत है। बस दुनिया की सुन तुम निराशा गले लगा बैठे हो, आगे बढ़ने का हौसला खो बैठे हो। आगे बढ़ना है तो बहरे बन जाओ मत सुनो लोगो की जो कहते है, तुम कुछ नहीं कर सकते। दरअसल वो खुद की रेखा बता रहे होते है, तुम्हारी नहीं। पहचान बनानी है तो अकेले चलो और सिर्फ सहारा चाहिए तो भीड़ में चलो ये तुम पर निर्भर करता है तुम्हे क्या चहिये। जिन्दगी एक ही बार मिलती है, बार-बार नहीं। या तो यू ही मर जाओ या इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो जाओ। जो भी चीज चहिये उसमें अपना 100% दो फिर जीत पक्की है। असफलता के आगे सफलता है, इसलिए असफलता से घबराओ मत। गिरो तो उठ जाओ जैसे एक बच्चा यू ही चलना नहीं सिख जाता जाने कितनी बार गिरता है पर फिर उठ कर चलता है और एक दिन खुद के पैरों पर चलना सिख

दौर नया लेकिन आदते पुरानी है....!!!

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दौर नया लेकिन आदते पुरानी है। चाँद, सूरज से रिश्तेदारी आज भी निभाई जा रही है। जितना देखो उतना सत्य लगता है। धरती की करवट में हर जीव पलता है। नदी बीच जलकुंभी उग आई है। हर लहर एक गाथा कह रही है। अहंकार का प्रदूषण फैला है। चिंता से जिन्दगी का जहाज बीच मजधार डूबा है। काली परछाई उजली काया को भयभीत कर रही है। दृष्टिपटल से हर चीज गायब हो रही है। अपने ही आवरण से ढकी खुद से मुकाबला कर रही है। दौर नया लेकिन आदते पुरानी है। एक युग बिता एक युग आ रहा है। आज को जीता इंसान कल की चिंता में रो रहा है!!

तेरे एहसास से फिर जिन्दा हुई मैं....!!!

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उजाले दीपों से... अपनी अँजुरी में भर लाना... आकाश में टिमटिमाते तारें... से मेरे आंगन में सजा देना... मेरे मन का अंधेरा... दूर कर देना... अपने विश्वास से... अब अमावश न लाना... जिन्दगी में... चाँदनी बो देना... मेरी जिन्दगी में... चाहत किसी चीज की नहीं... बस तेरी एक मुस्कान... मेरा दिन मेरी रात... मीठी कर जाते है... वक्त के दरिया में... मेरे एहसास बह गए थे... अपने नेक इरादे से... मेरा वो एहसास... फिर लौटा देना तुम... राम को सीता से अलग न करना... राधे को कान्हा के... गले से लगाकर रखना... सुख-दुख में जुड़ना... प्रेम की पाती में... संजोकर रखना... मेरी हर तस्वीर... अपने हृदय में छिपाकर रखना... अनिवार्य कुछ भी नहीं... बस रेखांकित करना मुझे... अपनी जिन्दगी में... नज़रों में भर... मेरी प्यास बुझा देना तुम... सजीले बन... मेरे आँचल में... सुकून पा लेना... अपनी अँजुरी में... मेरा मुख छिपा... मेरे आंसू पी जाना... अपनी मुस्कान में... मेरी मुस्कान मिला... मुझे फिर से जिन्दा कर देना... मेरा सुना जीवन... फिर रौशन कर देना तुम...!!

नसीब को पी नसीब जी रहे है......!!

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इस दुनिया में सिर्फ वक्त आपका अपना है, वो सही तो सब सही वरना सब गलत। ऊपर ईश्वर का आकाश.. नीचे उसकी धरती.. बीच में इमारतें गढ़ता इंसान अनूठी कल्पनाएं, उम्दा सोच, नायाब विचार संघर्षो में परिपक्व होता इंसान गूंजता आत्मविश्वास पर.. दुविधाओं में तड़पता वर्तमान, काल के मुख में समाती इंसानियत, बगले झांकते दोगले रिश्तेदार, रेलगाड़ी के डब्बे सी जिन्दगी, बस पटरी पर दौड़ रही है। उपहास में एहसास गवां चूका ऊंघता विचार.. इंतजार मंजिल का. पर सफ़र की धुप. खत्म नहीं हो रही है। वक्त//वक्त की बात है। कभी इस राह कभी उस राह बस चल रहे है, खुद का यक़ी दबा ग़ैरों का यक़ी कर रहे है। उखड़ती नियति को, झूठी दिलासा दे, जीवन जी रहे है। इंतजार किसी का नहीं फिर भी सबका इंतजार कर रहे है। सबको स्वीकार कर खुद को ढूंढ रहे है। अपराध कोई नहीं फिर भी अपराध का दंश झेल रहे है। वक्त के अनुरूप ढलने की कोशिश कर वर्तमान को जी रहे है नसीब को पी नसीब जी रहे है!!

बेमेल रिश्ते सी जिन्दगी......!!

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बेमेल रिश्ते सी जिन्दगी हर बात में सवाल-जवाब करती सी लगती है। उधड़े मन को नोचती सी लगती है। सैकड़ो बार रो, खुद को मनाया अपनों ने हर बार निचा दिखाया है। रखे थे कुछ ख़्वाब दिल में उनको वक्त के दरिया में बहाया है। झूठी हँसी चेहरे पर सजा सबको मनाया है। कोई जेवर नहीं तन पर शब्दों के जेवर से मन को बहलाया है। सबकी नज़रो में अभिमानी हो गए किसी ने भावनाओं कि कद्र न की बस तानों से नवाजा है। गलती तो हुई हमसें हम दर्द हँस-हँस सहते गये सबने समझा हमें दर्द ही नहीं होता है। पूरी उम्र लगा दी रिश्ते समेटने में अब पता चला हम मतलबी रिश्तो के काबिल ही नहीं है। कोई जमा-पूंजी नहीं बस कुछ शब्दों के मोती झोली में आ गिरे है। उनकों कलम में बटोर खाली पन्ने भर रहे है। सुकून अब कहीँ नहीं फिर भी शब्दों के मरहम से रिस्ते जख़्म भर रहे है!!

एक हार से मन का सारा डर निकल जाता है.....!!

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एक हार आपके मन से सारा डर निकाल देती है। फिर वो हार चाहे रिश्तों कि हो या किसी और चीज की और जब डर निकलता है, तभी जीत हासिल होती है। बाहर तो हम सभी घूमते है, क्या कभी मन में घूमे हो आप? नहीं न, यही तो हमारी भूल है। दुनिया तो घूम आये पर मन को तलाशना भूल गए, औरो के विचार ढोते-ढोते हमारे खुद के विचार कहीँ खो गए। रहस्य और रोमांच जीवन में होने चहिये पर इसके लिए किसी और पर आश्रित क्यूँ होना। जीवन की किताब है हम सब जिसमें कुछ अच्छे कुछ बुरे विचार भरे है। कुछ पन्ने खाली रह गए है, विश्वास कि कमी के कारण जिसे हमें भरना है आत्मविश्वास से। उम्र से लम्बा सफ़र है जिसे रोते-रोते क्यूँ पूरा करना। एक यात्रा परिंदों सी करते है, बिना कल कि चिंता किये आज उड़ान भरते है। राह में आये फूल, काँटों सबसे हाल-चाल पूछते है। कहते है उम्मीद से दुनिया चलती है,, तो फिर हम जिन्दगी कि कठिनाइयों में अपनी उम्मीद क्यूँ खो दे। दोस्ताना व्यवहार अपना कर एक नई जंग जीती जा सकती है। हमारी जिंदगी बदल तो नहीं सकती पर थोड़ा सा आत्मविश्वास डाल कर उसे बेहतर बना सकते है। अपने डर को हरा एक नई