संदेश

कसैली यादें रोज़ नया सबक सिखा रही है....!!!

चित्र
मन में जलती उदिप्त अग्नि कसैली यादें ला मन को गाढ़ा नेत्रों को लाल करती है। जीवन डगर की पलछिन यादें सड़को पर बिखरी धूप सी तपती है। पतझड़ में रेत सी उड़ती है। एक हँसी को मन तरसता है, बिन बादल बरसात में तन घुलता है। नयनों के गड्ढों में पानी भरता है, और हौले-हौले तन को भिगोता है। बाट जोहता विश्वास रोज़ थोड़ा-थोड़ा मरता है। प्रेम की कल्पना में प्रेम करना भूल गए, सूनी आंखे तारे गिन-गिन, खुद को बहला रही है। नित नई पहेली जीवन डगर में, कांटे बो रही है। चेतना की चिड़िया, सूनी डाल पर उड़ रही है। सामने भविष्य खड़ा है, पर मरी यादें, भूत में दौड़ा रही है। उल्लास की गेंद आसमां में उछल रही है। पर आँखों से ओझल हो गायब हो रही है। पथरीली जमीं समतल बनाने की चाह पर अनेक पर्वत राह रोके खड़े है। विषमता की काली जंजीर मन को जकड़ रही है। धरा पर पटक-पटक रोज नया सबक सिखा रही है। सबक सिखा रही है!!!

प्रेम किया जाता है....चाहा नहीं जाता......!!!

चित्र
सरल शब्द सरल वाणी किसको आयी है पसंद सब संपूर्णता  की तलाश में, असंतुष्ट हुए बैठे है। सब किस्म के दिल सब किस्म के दिमाग है। यहाँ और हर किस्म का प्रेम पलता है। यहाँ सच्चा प्रेम क्या है? हम इस पर भी कई सवाल खड़े कर देते है। जब हम किसी से प्रेम करते है तो, समग्र में उसे प्रेम करते है, अंशों में नहीं। उसके हर स्वरूप को स्वीकार करते है। कितनी भी विरह-वेदना क्यूँ न हो उसका साथ नहीं छोड़ते है। लड़ाई-झगड़ा ये सब प्यार में आम है। इसके बिना प्यार अधूरा है। प्यार एक गुलाब का फूल एक शूल भी है। मिलो तो दिल गुलाब सा महकता है। न मिलो तो दिल में शूल सा चुभता है। प्यार हो जाता है, जाँच-परख कर नहीं किया जाता। यहाँ सौदा भी नहीं होता है। कि वो प्यार करेगा तभी हम प्यार करेंगे प्यार किया जाता है। दिल से दिमाग से नहीं। प्यार क्षणिक भी नहीं होता, हमेशा के लिए होता है। प्यार ईश्वरीय वरदान है। ये हमें श्रेष्ठ बनाता है। जीवन जीना सिखाता है। प्यार हमें ऊँचाई पर ले जाता है, कभी गिराता नहीं। प्यार में अगर सत्यता नहीं तो, स्वर्ण सा गलाकर अशुद्धि दूर कर, खरा कुंदन बनाया जा सकता है।...

जरुरी नही हमारी हर कल्पना साकार हो जाये........!!!!

चित्र
जरुरी नहीं जो सोचे वो मिल जाये गैरों की महफ़िल में कोई अपना टकरा जाये कल्पनाओं की दुनियां में सब जायज है। पर हकीक़त इसके बिल्कुल विपरित है। जिज्ञासा के अधीन हम सब कर गुजरते है। पर बाद में पछताते भी है। बिना आंगन का घरौंदा भी सुंदर लग सकता है। पर मन को भाता नहीं है। यही हाल हमारा भी होता है। हर सुंदर चीज आकर्षित करती है। पर जल्द ही ऊब हो जाती है। आंनद हमारे मन में होता है। पर हमारा मन रेतीला हो बीहड़ रास्तों में भटक रहा होता है। सारा जीवन सूर्य बन चमकना चाहते है। पर परिश्रम से मुँह चुराते है। मानवीय ऊर्जा खत्म हो चुकी है। ढकोसलों में वक्त गवांते है। अनुभव हर चीज का चहिये पर हकीक़त का सामना करने की ताकत नहीं। भावों की ताजगी, विचारों की सत्यता सब उधड़ी हुई है। पर जीवन टेसू के फूल सा दहकता चहिये। हम ऐसे क्यूँ हो गए है?? हम सब जानकर भी अंजान बन जाते है। पर इसमे भी किसी की गलती नहीं हमें सब करना पड़ता है। मन मारकर ये वक्त का तकाज़ा होता है। क्या करें ये जीवन है। कभी-कभी ऐसे ही जीना पड़ता है। खुद को भूलने के लिए गैरों की महफ़िल में आना प...

चाँद की गठरी से गिरती चाँदनी......!!!

चित्र
चलती सड़क,  ठहरे यात्री रात्रि पहर में, चाँद की गठरी से गिरी चाँदनी धरती का अंग घेरती नदियां, झील, तालाब इंद्रधनुषी रंगों से रंगे हर ख़्वाब अनुभव के कंक्रीट जंगल में फंसी इंसानियत सस्ती जिंदगी, महंगी मौत संसार की इस मृगमरीचिका में कौन तृप्त हुआ है। सबका कोई न कोई ख़्वाब अधूरा रह गया है। भावनाओं को कुचलकर अपंग किया गया है। फिर गहराई को न समझने का कलंक लगाया गया है। अर्धरात्रि को झूलते सपनें निंद्रा भंग करते है। फिर नैनों की डोरी में बंधे सपनें करवटें बदल-बदल सुबह करते है। फिर एक दिन और आ जाता है। बिन बोले बिन पूछे हमसे हमारा दिन छीनने!!!

चलो फिर से अजनबी बन जाते है......!!!

चित्र
आख़िर क्यूँ चाहू मैं तुम्हे, कौन लगते हो तुम मेरे? शायद कोई नहीं इसलिए अब कुछ भी पूछना छोड़ दिया है। इंतज़ार भी नहीं करती तुम्हारा। अब तुम भी बार-बार लौटा मत करों। मुझे तुम्हारे बिना जीने की आदत हो गई है। तुम्हें रोज थोड़ा-थोड़ा भूलने की कोशिश कर रही हूँ, जल्द ही पूरा भूल जाऊंगी। न जाने कैसे समीप आ गई थी तुम्हारे, अपनी इस मूर्खता के लिए रोज खुद को दोषी ठहराती हूँ। तुम और मैं बिल्कुल अलग थे, अलग है। तुम हकीक़त में भी ख़यालो के साथ जीते हो। मैं ख़यालो में भी हकीक़त के साथ जीती हूँ। मैं आँसुओ में डूबकर भी हँसती हूँ। और तुम हँसकर भी हँसना नहीं जानते हो। कैसे निभाऊं तुम्हें? अब और निभाया नहीं जा रहा। तुम्हारी लापरवाहियां बरदास्त नहीं हो रही है। चलो फिर से अजनबी बन जाते है। तुम मुझे भूल जाओ, मैं तुम्हें भूल जाती हूँ। जो शरारते की थी, उसे जीने का माध्यम बना लुंगी। तुम मेरी चिंता मत करना। जीवन की कसौटी पर खरी उतरूंगी। अपनी राह के कांटे खुद बुहार लुंगी। किसी और को अपने दिल में जगह न दूँगी। तुम्हारे पास भी न आऊंगी। चाँद की ख्वाइश नहीं, पैरों में पत्थर ...

बहती नदियां.......!!!

चित्र
बहती नदी गोल करती पत्थर गांव के बाहर रहती सबके मन को भाती शिवालय के पांव छूती सबको पवित्र करती कर्म-कांड सब करती उबड़-खाबड़ रास्तों में बहती सागर में जा मिलती हर शाम डूबता सूरज निकलता चाँद सागर में चहल-कदमी करते जहाज तुमनें-और मैंने जब देखा था। ये खूबसूरत नजारा बाँहो में बाँहे डाले कुछ न बोले थे हम-तुम बस ख़मोशी से मुस्कुराये थे दोनों उस नज़ारे को आँखों में कैद कर लाये थे। अब उस पर कितनी बातें करते है। जब मन करता है, डूब जाते है। खो जाते है। उस खूबसूरत नज़ारे में!!!

कोई अर्थ नहीं.......!!!

चित्र
कोई अर्थ नहीं आहत मन के परिचय का गगन के मध्य खड़े हो, धरातल की बातें करने का। बिना पानी में उतरे तैरने की बातें करने का। खुद को नजरअंदाज कर, दूसरों को खुश करने का। अपने अश्क़ो को दूसरों के लिए जाया करने का। जो आपकी जिन्दगी से जा रहा है। जाने दो पकड़ो मत समझ लो वो आपके लिए नहीं बना था। उससे बेहतर आपका इंतजार कर रहा है। यक़ी करों अजनबी चेहरे पहचानने से क्या मिलेगा पहले खुद की पहचान बना लो, लोग तुम्हें खुद पहचान लेंगे। बड़े नादान है वो लोग जो इस दौर में भी वफ़ा की उम्मीद करते है। भीड़ में खोकर, भीड़ से अलग होने की कहानी कहते है। जिन लोगों के पास आपके लिए वक्त नहीं उनसे वक्त नहीं मांगना चहिये। अपनी वाणी की मधुरता को किसी और के लिए कड़वी नहीं करनी चहिये। क़िस्मत में हर रंग का धागा मौजूद है। जिसे चाहो सुलझा लो, जिसे चाहो उलझा लो जो न आये पसंद उसे वहीं पूर्णविराम दो और आगे बढ़ जाओ। नये सफ़र, नई मंजिल की तैयारी आज ही लो अपने जीवन की एक नई सुरुआत आज ही कर लो!!!