संदेश

एक शाम

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एक शाम तुम लेकर आना मेरे लिए थोड़ा वक्त अपने लिए थोड़ा आराम। दोनों बैठ चाय की चुस्कियों में बिखरा दिन समेट लेंगे। तुम करना थोड़ी नशीली बातें मैं थोड़ा शर्मा कर रसोई में चली जाऊंगी। तुम रसोई में भी आ जाना फिर मेरे संग आटे की लोई में स्वाद भरना छेड़खानी का। तुम रात का सकोरा बन जाना मैं ख़्वाब भर पी लुंगी सकोरे में। तुम गाना मेरे लिए एक गीत जिससे बादल भी मचल जाए। तुम थाम लेना मेरा हर मुहर्त मेरे आंसू, मेरी तड़प, मेरी हँसी भी। तुम सागर बन जाना मैं नदिया बन तुममे समा जाऊंगी। तुम सूरज बन नदिया को आगोश में भर लेना। लहरों की चमक में खो जाना।

जिम्मेदारी का बोझ

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चिट्ठी हो तो कोई बांचे भाग न बांचे कोई" जिम्मेदारी का बोझ पड़ते ही कोई भी इंसान खुद ही जीना सीख जाता है। एक छोटी सी कहानी : जिम्मेदारी का बोझ बंगाल में सालों से एक परम्परा रही है। यदि किसी महिला के पति का देहांत हो जाता है तो परिवार वाले उसे वृंदावन छोड़ आते है। ताकि वह अपना बचा जीवन भगवान को याद करते हुए गुजारे, या यूं कह ले परिवार वाले उससे पीछा छुड़ा लेते है। ऐसी ही एक स्त्री वृंदा के पति की मौत हो जाती है। शादी के मात्र 10 वर्ष बाद। घरवाले अपनी कुल की रीत निभाने मतलब उसे वृंदावन छोड़ने पर आमादा हो जाते है। पर वह वहाँ जाना नहीं चाहती कारण उसका 8 साल का बेटा। सब उसे वहाँ जाने के लिए मनाने, डराने, धमकाने, भी लग जाते है। उसका जीवन पति के मरते ही नर्क बन जाता है साथ ही बेटे का भी। वह सबके सामने खड़ी हो जाती है अपने बेटे की ढाल बन कर और फैसला सुना देती है वह कहीं नही जाने वाली। घर वाले उसके खिलाफ हो जाते है। और उसे घर से निकाल देते है। मायके वाले भी उसे आश्रय नहीं देते समाज के डर से। जैसे-तैसे उसको एक आश्रम की मदद मिल जाती है वह अपने बेटे के साथ वहाँ रहने चली जाती है। लेकिन किस...

इंदु

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रात के तीन बजे अचानक नींद खुल गई खुद को पसीने से तर-बतर पाया। फिर पंखा तेज कर पसीना पोंछा और दो ग्लास पानी एक साथ गटक लिया। कुछ राहत मिली तो फिर सोने की कोशिश की पर नींद अब नहीं आई। एक अजीब सा सपना जो देख लिया था, मन आशंकाओं से भर गया था। सोचा नींद तो अब आएगी नहीं थोड़ा लिख लिया जाय सो लिखने बैठ गई। एक छोटी सी कहानी..... इंदु..... एक जहीन लड़की पर गरीब घर में जन्म हुआ था। पर सुंदरता के कारण एक बड़े घर में ब्याह हो गया। ससुराल आते ही तानों की बौछार से स्वागत हुआ उसका। ~बड़ी सुंदर है तभी फ़ांस लिया हमारे चिराग को।   कभी सपने में भी ऐसा घर-बार न देखा होगा, बिलाई के   भाग का छींका टूट गया समझों। ऐसे शब्दों से खुद का स्वागत होता देख उसकी सारी खुशी गायब हो गई। कुछ बोल न पाई बस आँसुओ में भीग निःशब्द हो गई। क्योंकि उसके मायकेवाले बहुत खुश थे बेटी का ऐसा नसीब देख। बड़े घर मे ब्याह कर। कुछ ही दिनों में इंदु को उस बड़े घर के चिराग की असलियत पता चल गई। वो ड्रग्स लेता था और उसके कई लड़कियों से सम्बन्ध थे। वो रात की पार्टियों का शौकीन था सो रात घर पर कम ही रहता था। उसकी सास को य...

सफ़र जिंदगी का....।

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बेतरतीब जिंदगी कभी ख़यालों में उड़ती है तो कभी दुनियादारी में। सफ़र जिंदगी का धूप में चलता छांव में रोता है, कल की फिक्र में। जिंदगी वक्त के पायदान पर लुढ़क बस जरूरतें पूरी करती रह जाती है। और दफ़न ख़्वाईशो की जिंदा मिशाल बनती है। रेलगाड़ी सी जिंदगी मालगाड़ी बन सामान ढोती रह जाती है। हर स्टेशन पर रुक दूसरों को ताकती रह जाती है। जिंदगी की कहानी बहुत लंबी है, पढ़ते-पढ़ते जब बोर हो जाते है तो झुंझला कर अपनी ही जिंदगी को कोस दूसरे किस्से-कहानियों में डूब खुद को ताजा कर लेते है। जिंदगी का सफ़र यूं ही तड़प-तड़प गुफ्तगूं कर-कर सागर की लहरों में डूबो देते है।

किताबघर

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दुछत्ती की छोटी सी किताबघर आज उंगलियों के स्पर्श से चकित हो उठी। धूल की चादर ओढ़े  मुस्कुरा उठी। ईंट-पत्थर के मकान में ये किताबघर कब दुछत्ती पर चढ़ बैठी पता ही न चला। कई किताबें अनछुई थी, सर झुकाए बैठी थी। पढ़ाकू आंखे जो अब उन्हें नहीं पहचानती थी। दो, चार किताबे आज झाड़-पोंछ नीचे ले आई। तो शब्दों का झुंड बोल पड़ा हमारी बेकदरी मत किया करो हम हुड़दंग नहीं करते जीवन संवारते है।

अभागा पत्ता...

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डाल से टूटकर वो पत्ता बहुत रोया फिर किसी शाख से न जुड़ पाया। पेड़ से टूट दर्द से कहराता हवा में उड़ता रहा पर किसी की नज़र में न आया। उड़ता-उड़ता सूखे पत्तों के झुंड में जा पहुंचा। शोर करता पैरों के नीचे कुचला गया। पर किसी को तरस न आया। अभागा पत्ता डाल से टूट माटी में मिल गया पर किसी को रास न आया।

सच के कई पहलू होते है..।

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सच के कई पहलू होते हैं, इसलिए किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले सबकी बातें सुननी चाहिए। सीख : कई बार हम सच्चाई जाने बिना अपनी बात पर अड़ जाते हैं कि हम ही सही हैं। जबकि हम सिक्के का एक ही पहलू देख रहे होते हैं। इसलिए, हमें अपनी बात तो रखनी चाहिए, पर दूसरों की बात भी पूरी सुननी चाहिए। इस कहानी से समझें--- एक गांव में छह दृष्टिहीन व्यक्ति रहते थे। एक बार उनके गांव में हाथी आया। सभी लोग उसे देखने जा रहे थे। उन्होंने भी सोचा कि काश वे दृष्टिहीन न होते तो वे भी हाथी को देख सकते थे। इस पर उनमें से एक ने कहा कि हम हाथी को भले ही न देख सकते हों, लेकिन छू कर तो महसूस कर ही सकते हैं कि हाथी कैसा होता है? सभी उसकी बात से सहमत हो गए और उन्होंने हाथी को छूना शुरू किया। उन सबने हाथी के अलग-अलग हिस्सों को स्पर्श किया था। जब उन्होंने आपस में चर्चा करते हुए हाथी का वर्णन  शुरू किया तो जिसने हाथी के अगले पांवों को छुआ था, उसने कहा हाथी किसी खम्भे की तरह होता है। जिसने हाथी की पूंछ को छुआ था, उसने कहा कि वह रस्से की तरह होता है। पिछले पैरों को छूने वाला बोला वह पेड़ के तने की तरह होता है। जिसने...