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लघुकथा : आड़ी-तिरछी रेखाएं

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कुछ आड़ी - तिरछी रेखाएं खींच उसने माँ के आगे कॉपी बढ़ा दी। " मम्मी देखों मैंने गुलाब का चित्र बनाया "   'अरे वाह बहुत सुंदर बनाया है आपनेे '। और बनाओ, ये बोल उसकी मम्मी अपने काम में वापस व्यस्त हो गई। वो कभी कोई अड़ा - तिरछा फूल तो कभी चार लाइनें खींच किसी जानवर की आकृति बनाता जाता और लगातार अपनी मम्मी को दिखाए जा रहा था। और उसकी मम्मी बिना देखे ही और बनाओ बोल अपने काम में लगी रही। मम्मी देखों ये मैंने  " मम्मी " बनाया है। " अरे दिखाओं तो " मम्मी देखती रह गई ! उसने बस " मोबाइल " के चार डंडे खींच दिए थे और मम्मी  की  "गोल " बिंदी बना दी थी। और खुद दूर खड़ा हो गया था चार आंसू के साथ। " ये आपने क्या बनाया है "  मम्मी बनाया और आपका फोन बनाया बनाया है मम्मी, । और आप दूर जाकर क्यों खड़े हो गए थे ? " क्योंकि आप मोबाइल से ज्यादा प्यार करती हो मम्मी मुझ से कम। उसकी मम्मी की आँखों में भी अब आँसू थे, और उसने अपने बेटे को गले से लगा कर कहा मुझे माफ़ कर दो बेटा मैं मोबाइल से नहीं आपसे ज्यादा प्यार करती हूँ। बेटा मासूमियत के साथ बोला...

लघुकथा : शापित गड्ढे

गड्ढे  में गिरती दुनिया  कोरोना ने हम सबको गड्ढे में डाल दिया। अब बस मिट्टी की भराई बाकी है। बरसात का मौसम 2, 4 दिनों में आने वाला है, पर दिहाड़ी मजदूर नहीं मिल रहे नगरनिगम वालों को। भ्रष्ट अफ़सर और मुंहलगे ठेकेदार समझ नहीं पा रहे है अब क्या किया जाए। एक अफ़सर दूसरे अफ़सर से बोल रहा है....। कम्बख़्त ये वीआईपी लोग समझते क्यों नहीं अभी कोरोना काल है। ये सड़क के गड्ढे अभी कैसे भरे? बस निकाल दिया  सड़क पंचनामा। ठेकेदार मजदूर सब गायब है, अब ये सड़क क्या हम भरे जाकर। अधिकतर मजदूर अपने गांव, देहात, शहर लौट चुके है। सारा निर्माण अधूरा पड़ा है। गांव- देहात से अब मजदूरों को कैसे लाये। अब उन्हें कंधे पर बिठा कर तो लाया नहीं जा सकता है। अब क्या करें? दूसरा अफ़सर मुझे एक उपाय सुझा है इस समस्या का समाधान शायद इससे निकल जाए। पहला अफ़सर जल्दी बताइए उपाय जान गले मे अटकी हुई है। तो सुनिए.... इस सड़क पर कल ही एक एक्सीडेंट हुआ है। एक लड़के का, बोल देते है उस वीआईपी के चमचों को कि वो कोरोना पॉजिटिव था। वो खुद ही अपना रास्ता बदल लेगा या आना ही कैंसिल कर देगा। बढ़िया उपाय सोचा है आपने। चलो इस उपाय को आजमाते ...

लघुकथा : सबकी लाड़ली लाड़ो

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कमाल की आंखे थी उसकी, गहरी, काली, बोलती आंखे जैसे सारी बातें आंखों से ही कह देगी। सारे घर की लाडली लाड़ो,  यही नाम था उसका लाड़ो। उसके जन्मते ही दादी ने ये प्यारा नाम रख दिया था उसका। लाड़ो सारे घर मे इतराती फिरती थी, जैसे उस जैसा कोई और है ही नहीं। माँ ने भी उसे खूब सर चढ़ा लिया था। तीन भाइयों में इकलौती जो थी। पापा, दादा, दादी, माँ सबकी जान उसी लाड़ो में बसती थी। वो जरा सी खांस भी दे तो दादा-पापा की लड़ाई हो जाती थी।  ' इसे अभी तक डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाया तूने '। लाड़ो ने 12 वीं अच्छे नम्बरों से पास कर ली थी, तो उसे एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन भी मिल गया था। अब लाड़ो के पैर जमीन पर नहीं टिकते थे। रोज नई ड्रेस पहन कर खूब सारा काजल लगा कर कॉलेज जाने लगी थी वो।  उसे कहाँ कुछ पता था, वो तो बस यूं ही बिना बात सहेलियों संग खिलखिला कर हँस पड़ती थी। यही आदत उसे ले डूबी। एक दिन पार्किंग में वो अपनी सहेली के साथ उसकी स्कूटी लेने गई तो चार सड़कछाप लड़को ने दोनों को छेड़ दिया। " वाह क्या हँसती है ये पीली ड्रेस वाली लड़की " लाड़ो ने उन्हें घूर कर देखा और एक साधरण सी गाली उन पर चिपका दी। लड़के...

क्रोध की अग्नि में जलता व्याकुल मन

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क्रोध की अग्नि में जलता व्याकुल मन अंगारे सा दहकता है। विचार शून्य हो जाते है। हम खुद को छला हुआ महसूस करते है। हर बात में क्रोध हावी रहता है। कभी मरने का मन तो कभी बदला लेने का मन करता है। सामने वाले को उसकी हक़ीकत बता देने का मन करता है। पर हक़ीकत में सब हमारी ही गलती होती है। हम क्यों दूसरों की बातों में आकर खुद का सर्वनाश करते है। पहले बात मान कर फिर क्रोध का घूँट पी कर, खुद को तड़पाते है। खुद को जलाते है। हम क्यों ऐसा करते है। क्रोध का रंग इतना गाढ़ा क्यूँ होता है? क्रोध तपती दोपहर सा क्यूँ होता है? क्रोध हमारे विचारों को खा क्यूँ जाता है? क्रोध में भूख-प्यास क्यूँ मर जाती है? क्रोध में हम खुद का ही नुकसान क्यूँ कर लेते है? क्रोध में उदासी क्यूँ लिपटी होती है? क्रोध रेतीली आंधी सा क्यूँ होता है? क्रोध में इंसान अपना ही सर पत्थर से क्यूँ टकराता है? क्रोध ने कई जीवन निगल लिए। मेरा भी जीवन क्रोध ने निगल लिया। क्रोध खारे समुंदर जैसा होता है, जहाँ सिर्फ जहरीली, विचार शून्य संवेदनाएं होती है। क्रोध बहुत काला होता है। जैसे अमावश की रात में बीहड़ का सूनापन। जंगल की सांय-सांय करती आवाज जैसा। कु...

लघुकथा : निर्जला अरी ओ निर्जला

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निर्जला अरी ओ निर्जला ~~ सुबह-सुबह कहाँ मर गई, अभी तक करमजली ने चाय का ग्लास नहीं पकड़ाया है। इसके माँ - बाप ने नाम भी सोच - समझ रखा है " निर्जला " ऐसा लगता है महीनों से इसने रोटी नहीं खाई है। सुखी लकड़ी सी काया वाली लड़की। मुआ मेरा बड़ा बेटा जाने इसमें क्या देख ब्याह लाया। जरा आंधी आ जाये तो कम्बख़्त लड़खड़ाने लगती है। लगता है, अभी हवा में उड़ जाएगी। लो आ गई महारानी, ये सुबह - सुबह कहाँ गई थी। आधा घँटा हो गया मुझे चिल्लाते हुए,  मेरी चाय कहाँ है ? उसी का इंतजाम करने गई थी माँ जी,   इंतजाम करने ? अरी चाय का कौन सा इंतजाम करने गई थी ? चाय गैस पर बनाती है,  और चायपत्ती, चीनी, दूध, अदरक सब घर में रखा है। गैस खत्म हो गई थी माँ जी सो पड़ोसन के यहाँ  चाय बनाने गई थी।   ' देर हो गई '। ला चाय ला, सुबह - सुबह सारा दिन खराब कर दिया तूने। रात को नहीं बता सकती थी किसनवा को कि गैस खत्म होने वाली है। कहा था माँ जी, तो उन्होंने कहा पड़ोसन के यहाँ जा उस बुढ़िया के लिए चाय बना लाना। फिर जब सूरज चढ़ आएगा मैं सिलेंडर ले आऊंगा। क्या कहा तूने, किसनवा ने बुढ़िया कहा मुझे, हाँ माँ जी! वो...

चाँद का गुमान

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किस्सों की दुनिया भी क्या अजीब दुनिया है। सच, कौतूहल, और कल्पना सब मिलकर हम पर जादू जैसा असर करता है। मनोविज्ञान की भाषा में  " कल्पना सच से अधिक ताकतवर होती है, और ये कल्पना ही एक दिन सच बनती है। चाँद और पृथ्वी के बीच का गुरुत्वाकर्षण रहस्य। विज्ञान ने बता दी चाँद की असलियत। तो मन ने सोचा उधार की चाँदनी पर इतना गुमान क्यूँ? मंदिर- मस्जिद पर टँगा.. सब व्रतियों को ये इतना तड़पाता क्यूँ है? एक कविता चाँद पर... ऐ चाँद तुम्हें खुद पर  इतना गुमान क्यूँ है? आसमान में झूलते मीनारों को छूते सबकी कल्पनाओं में बूंद-बूंद क्यूँ टपकते हो? तुम तो प्रेम का शिखर हो, फिर झील में डूबते क्यूँ हो? कांसे के थाल में भरे दूध जैसे हो, फिर उबड़-खाबड़ पिंड जैसे क्यूँ हो? तुम प्रेम का आलिंगन फिर बूढ़ी माई के पीछे छिपते क्यूँ हो? तुम भावना प्रधान फिर दूर से सबको ठगते क्यूँ हो? तुम पूनम का चाँद.. तुम दूज का चाँद.. तुम चौथ का चाँद.. फिर कलंक का चाँद.. तुम बनते क्यूँ हो? तुम जल का कारक ग्रह फिर तुम पर जल क्यूँ नहीं? तुम इतने कठोर फिर गुमान किस बात पर। बताओ ऐ चाँद अपना ये रहस्य अपना ये गुमान। बताओ तो सही?

तुम भी न अम्मा !

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अम्मा तुम्हारे घुटनों का दर्द बढ़ता जा रहा है, थोड़ा चल फिर लिया करो। तुम्हारे घुटनों की ग्रिस खत्म हो गई है। अरे मेरे घुटनों के पीछे क्यूँ पड़ी रहती है री। जा तेरी माँ से वो लहसुन का तेल मेरे घुटनों के लिए बनाया है, ले आ जाकर। और सुन वो सूजी के हलवे की भी कही थी उससे, जरा देखियो उसने बनाया की नहीं। अम्मा तुम तो बहुत चटोरी हो गई हो जब देखो तब हलवा बनवाती रहती हो मेरी माँ से। तुम्हें पता है वो हमेशा कैसे गुस्से में हलवा बनाती है तुम्हारे लिए। हाँ पता है री, रहने दे गुस्से में वो तो उसकी आदत है हमेशा भुनभुनाने की, पर हलवा बड़ा स्वाद बनाती है री तेरी माँ। सुन अब बातें कम कर जरा देख कर आ हलवा बना की नहीं। अच्छा आती हूँ देख कर,  'और वो हलवे का भरा कटोरा ले आई, अम्मा ये लो तुम्हारा हलवा।  " वाह क्या खुश्बू है देशी घी की, हाँ सो तो है पर तेरी माँ ने इसमें ज़रा बादाम कम डाले है।" अम्मा तुम सच्ची बहुत चटोरी हो गई हो जब देखो तब दांत दर्द का बहाना बना हलवा खाती हो। अरी सुन तूने हलवा खाया की नहीं,  नहीं अम्मा मैंने तो सुबह बासी रोटी पेट भर खा ली थी।  बासी रोटी,  मेरी लाडो रोज बा...