संदेश

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आँखों के कोरो में आयी नमी की बूंद और उस बूंदों में समाते हमारे उलझे रिश्तो की डोर  खुद में अपनापन समेटे खोखले रिश्ते ! रिश्तो की गरिमा जो मैं ढूंढने चली तो पाया कच्चे धागों में लिपटे कुछ नाजुक रिश्ते क्या ये रिश्ते इतने नाजुक होते है ? काँच की चूड़ी के जैसे रेत में उड़ गई बारिश की बूंदों के जैसे हम क्यों नहीं कर पाते है इसमे दोस्ती की मिलावट  क्योंकि जहाँ दोस्ती होती है ! वहाँ सुखी घास में भी नमी भरे बदलो की उम्मीद जाग ही जाती है ! रजनीगंधा सी ख़ुशी आ ही जाती है !  😊😊😊😊😊

कहानी बोकाजू और चुआंग-जू की

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एक कहनी सुनाती हूँ ! आज मुस्कुराएँगे जरूर आप सब मैं जानती हूँ बस एक यही कमी है आपकी और मेरी भी हम खुद के लिये जीना भूलते जा रहे है मुस्कुराना भूलते जा रहे है जीवन की दौड़ में तो हम आगे निकल गए लेकिन हमारी वो मुस्कुराहट कहीँ दब गयी है आइये उसे तलाश लाते है ! सदियों पुराना एक किस्सा हैं बोकाजू का , जो यूं तो अच्छे ख़ासे अक्लमंद थे , लेकिन उन्हें सुबह उठते ही ज़ोर से अपना नाम लेने की और फिर उतनी ही ज़ोर से 'यस सर' कहने की बड़ी अजीब आदत थी ! एक बार किसी ने पूछा ' ये क्या हरकत हुई भला , ख़ुद का नाम पुकारना और खुद ही हुंकारा भरना ?' बोकाजू मुस्कुराये , मैं कहीँ यह भूल न जाऊ कि मैं कौन हूँ , इसलिए मुझे खुद को रोज़ यह याद दिलाना पड़ता है कि मैं कौन हूँ !' एक कहानी और एक रात चुआंग-जू किसी गहरी गुत्थी को खोलने में उलझे थे अचानक उन्होंने ग़ौर किया कि ज्यादातर शागिर्द ऊंघ रहे है ! वे मन ही मन हँसे और एक कहानी शुरू की --- किसी यात्रा के दौरान पैसों की तंगी की वजह से एक आदमी ने अपना गधा हमराही को बेच दिया , लेकिन अपनी आदत के मुताबिक गधे की ओट मे सोना नहीं छोड़ा ! गधे के नए म

माँ तुम सा कोई नहीं

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     तुम देती थी हिदायते हज़ार  और मैं अनसुना कर जाती थी तुम छीपा जाती थी बाबा से मेरा लेट आना और मुझे बचा लेती थी डाँट पड़ने से मैंने न जाने कितनी बार तुम्हारा दिल दुखया फिर भी तुम मेरा साथ देती थी खुद कितना भी डाँट लो पर किसी और को कुछ कहने न देती थी आज तुम्हारी बातें याद करके मन भर आया जानती हो क्यों क्योंकि मैं भी आज वही सब करती हूँ जो तुम करती थी मेरे लिये सचमुच माँ  पर आज मैं तुम्हारी डाँट खाने के लिये बेचैन हुई जा रही हूँ तुम्हारे दर्द को जी रही हूँ माँ

गुलदस्ता गुलाबो का

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अच्छा सुनो कल फिर आओगे न गुलाबो का गुलदस्ता लेकर हा आऊँगा ! तुम भी कितनी भोली हो कुछ भी नहीं समझती हो क्या मतलब कुछ नहीं ! कहो प्लीज़ ये गुलाबो का गुलदस्ता तो सिर्फ एक बहाना है तुम्हारे करीब आने का ! तुम चाहो तो मैं सारी जिंदगी तुम्हारे लिये ये ला सकता हूँ  ! अच्छा ! मुझे भी तो इसी बात का इंतज़ार था ! कितनी देर लगा दी तुमने ये बात कहने में ! कल सिर्फ तुम आना ये गुलाबो का गुलदस्ता मत लाना क्यों ? क्योंकि मेरा गुलाबो का गुलदस्ता तो तुम खुद हो मुझे किसी और गुलदस्ते की जरुरत नहीं है ! क्या सचमुच हाँ सचमुच  !

जरूरी तो नहीं

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हर कहानी का कोई अंत हो ये जरूरी तो नहीं !    नर्म रिश्तो की रजाई में अब भी गर्माहट बची हो ये जरुरी तो नहीं ! खारा पानी सिर्फ समुन्दर में बस्ता हो ये जरूरी तो नहीं ! कुछ पानी आँखों में भी तो बस्ता है ! हर रिश्ते का कोई गहरा नाम हो ये जरूरी तो नहीं ! जिन्दगी की साँझ में भी अपनों के सुकून की चादर मिल ही जाये ये जरुरी तो नहीं ! हर बेगाना ग़ैर हो ये भी जरूरी तो नहीं ! कुछ बेगाने तो अपनों से भी बढ़कर होते है !

रजनी

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अपने ऑफिस में हैड रजनी सभी को आदेश देती और सब उसकी आज्ञा का पालन करते  उसे किसी से कुछ पूछना नहीं पड़ता था ! सब कुछ बहुत अच्छे से चल रहा था बस इन दिनों वो थोड़ी ज्यादा थकान महसूस कर रही थी काम की वजह से इसलिए आज थोड़ी जल्दी घर आ गयी वो सोफे पर बैठी ही थी की डोरबेल बजी उसने उठ कर गेट खोला तो देखा एक सेल्समैन था जो वैक्यूम क्लीनर बेच रहा था ! रजनी ने उसे मना करने के लिहाज से कहा कि हमारे यहाँ पहले से वैक्यूम क्लीनर है और वो गेट बंद करने लगी लेकिन सेल्समैन ने विनम्र वीनती करते हुए कहा कि मैडम प्लीज़ ये देख लो बहुत अच्छा है ज्यादा महंगा भी नहीं है ! और बहुत अच्छी कम्पनी का भी है आप इसे कहीँ भी ले जा सकती है ये बहुत हल्का और छोटा भी है इतना निवेदन सुन कर रजनी ने कहा अच्छा चलो ठीक है !दिखाओ उसने दिखाना शुरू किया और एक एक कर उसकी सारी खुबिया बतायी रजनी को वैक्यूम क्लीनर काम का लगा और ज्यादा महँगा भी नहीं उसने उसे लेने के बारे में सोचा उसे इस तरह सोचता देख सेल्समैन ने कहा सिर्फ 5000 रू का है मैडम आप अपने पति से पूछ लो शायद आप के पास इतने पैसे नहीं होंगे ! अगर वो मना कर देंगे तो कोई बात

एक बूंद शहद की

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दिल के दरिया में बहकर            दिमाग के तारो में उलझकर गलती से मैने रिश्तों की धून्ध में उम्मीदों की तलाश की  तो मुझे हर रिश्ता खुद में उलझा गैरों की महफ़िल से एक बूंद शहद की चुराता मिला ! जो मैंने कड़क कर पूछा ये शहद की बूंद क्यों चुराई तुमने तो जबाब मिला खोखले रिश्तों के अकेलेपन में दम घुटता है !अब हमारा  क्या हुआ जो एक बूंद शहद की चुरा ली क्या तुम नहीं चुराती सबकी आँखों से नीर , होठों से मुस्कुराते शब्दों की तारीफ़े ये सुन मैं अवाक् थी ये सब तुमने कैसे जान लिया मुझे न जान कर भी !