संदेश

जेवर

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  सुप्रिया की शादी होते ही वो गहनों से लाद दी गई। कानों में बड़े-बड़े झुमके, भारी मंगलसूत्र, दोनों हाथों में मोटे-मोटे कड़े, पैरों में भारी-भारी पायजेब, और हमेशा एक जरी-गोटे वाली साड़ी। सुप्रिया ये सब पहन फूली नहीं समाती थी। उसे भी ये सब पहनना बहुत अच्छा लग रहा था। लेकिन शादी के एक महीने बाद ही वो इस सब गहनों के भारीपन से दबने लगी थी। वो अपनी सास से जेवर उतार हल्के जेवर पहनने की बात कहना चाहती थी पर सास की खुशी देख कह नहीं पा रही थी। उसकी सास जो भी आता उसके सामने खनदानी गहनों की तारीफ लेकर बैठ जाती थी। सुप्रिया का एक देवर कंवारा था। एक दिन उसने अपनी सास को एक रिश्तेदार को कहते सुना अब दूसरे बेटे की भी जल्दी शादी करनी है,  'तो रिश्तेदार ने कहा दूसरी बहु को भी इतना ही जेवर चढ़ाना पड़ेगा आपको वो भी ले रखा है क्या'?  तो उसकी सास बोली  अरे! नहीं यही जेवर पहन कर मैं ब्याह कर आई थी इस घर में। यही जेवर पहन कर बड़ी बहू आई है, और यही जेवर पहना कर छोटी बहू को ले आएंगे। फिर इन जेवरों को अगली पीढ़ी के लिए बैंक में रख देंगे। सुप्रिया सब सुनती रह गई जिन जेवरों से वो दबी जा रही थी वो उसके थे ही नहीं।

रांड (एक गाली)

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  रांड  (एक गाली) राजस्थान के गांवों क्या शहरों तक में औरतों को दी जाने वाली एक आम, भद्दी, अपमानजनक  गाली।  ये गाली सास अपनी बहू को,  माँ तक अपनी बेटी को देती हुई दिख जाएगी। पुरुषों का तो आप समझ सकते होंगे वो किस- किस को रांड नहीं कहते होंगे। क्या अनपढ़ क्या पढ़े-लिखे सभी कभी न कभी इस गाली का कहीं भी शान से इस्तेमाल कर लेते है। हमारा सभ्य समाज और भाषा भद्दी गालियों का। एक कहानी रांड... शनिश्चरी के पैदा होते ही उस पर शनिश्चर लग गया था। एक तो देखने में थोड़ी पक्के रंग की और उस पर उसके बाल भी भूरे रंग के थे। हालाकि उसके नाक-नक्स बहुत सुंदर थे। कुल मिलाकर वो दिखने में इतनी बुरी भी नहीं लगती थी। लेकिन पूरा घर उसे उसके दिखने को लेकर ताने मारने से बाज नहीं आता था। और गाहे-बगाहे उसे "रांड" कहकर संबोधित कर दिया जाता था। शनिश्चरी को उसे "रांड" कहना अच्छा नहीं लगता था।  गांव में लड़कियों को आठवीं के बाद पढ़ाने का रिवाज नहीं था सो उसकी भी पढ़ाई छुड़वा दी गई।  गांव का ही एक लड़का रमेश उसे मन ही मन प्रेम करने लगा था।  शनिश्चरी के घर में एक गाय थी। और वो लड़का रोज सुबह वहाँ दूध लेने आता था

रिश्वत

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  कलेक्टर हो या एक्टर सब रिश्वत के नुमाइंदे है घूस की पीढ़ी के ये रक्षक,सबके सामने ईमादारी के पुतले पीछे बेईमानी में कलाकार है। कलेक्टर ने पेट्रोल पंप के मालिक की एक और पेट्रोल पंप के लिए लीज कैंसिल कर दी थी। तो उसने एनओसी जारी करने का आवेदन किया तो कलेक्टर के पीए ने 2 लाख की डिमांड कर दी। पेट्रोल पंप के मालिक ने एसीबी में शिकायत कर दी। फोन ट्रैप हुआ खुफिया जांच हुई। और कलेक्टर का पीए पैसे लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया, तो उसने एक 1 लाख रुपये वापस करते हुए ईमानदार बनने का नाटक करते हुए कहा, "हम ईमानदारी से काम करते है नाजायज पैसा नहीं लेते"।  जाँच में सामने आया कलेक्टर भी पीए से मिला हुआ था। दोनों रिश्वत का पैसा आधा-आधा करते थे। अब कलेक्टर तो किसी तरह बच गया क्योंकि वो सामने से पैसा नहीं ले रहा था। पीए फंस गया गिरफ्तार हुआ वो अलग। लेकिन पेट्रोल पंप के मालिक का नया पेट्रोल पंप अधर में लटक गया। अब नया पीए भी अपने हिसाब से रिश्वत मांग रहा है। अब मजबूरी में वो रिश्वत दे भी रहा है। आखिर उसने ये पैसा भी तो कम पेट्रोल और मिलावटी पेट्रोल भर-भर कर कमाया है। बेईमानी रुके तो कैसे रुके सब

कागज़ का टुकड़ा

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  उस एक कागज के टुकड़े ने सबकी नींद उड़ा दी थी। वो कोई आम कागज का टुकड़ा नहीं था। एक छोटा सा वसीयत नामा था। जो उसके पिता लिख कर किसी वकील के यहाँ रख गए थे। अभी तेरहवाँ भी नहीं हुआ था। ये तेरहवें से एक दिन पहले ही सबको वकील से मिला था। पूरे मेहमानों के बीच इस कागज़ के टुकड़े की कानाफूसी सी हो रही थी।  कल तेरहवाँ था पर आज सब स्तब्ध थे। आखिर ऐसा क्यों हुआ? सब यही सोच रहे थे।  इतने अच्छे बेटे-बहु, एक अच्छे घर में ब्याही लड़की जो अपने पिता का बहुत ध्यान रखते थे। उनकी हर जरूरत का ख्याल रखते थे। फिर ऐसा निर्णय क्यों हुआ सब इन्ही विचारों में उलझे थे। फिर वो दिन भी बीत गया आज उनके पिता का तेरहवाँ था और सब काम ठीक से हो रहा था। इसी बीच वो वकील आ गया और कहा आप सबका निर्णय क्या है, जल्दी बता दीजिए मुझे ये कोट में केस दाखिल करना है। सब एक साथ बोल पड़े केस, कैसा केस? वसीयत का केस जो इनके गोद लिए बेटे को मिलने जा रही है इन दोनों को नहीं। पर ऐसा क्यों, ये बेटा इन्होंने कब लिया जो कोई नहीं जानता। इतने में उनका बेटा और बेटी बोल पड़े हां आप ये सारी प्रोपर्टी उस नेक इंसान को दे दे। अब सब अचंभित थे। ये देख उनके बे

सरकारी आपदा

 आपदा का इम्तिहान कितने बेरोजगार हुए, कितने भूख से मरे, कितने बेइलाज मरे, कितने ख़ौफ़ से मरे, कितने अवसाद में मरे। कोई आंकड़ा नही हमारे पास सिवाय सरकारी आंकड़े के। एक छोटी लघुकथा : सरकारी आपदा आत्माराम जी कोल्हू के बैल जैसे हो गए है, सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते-लगाते। अवसाद और क्रोध अब उनकी नसों में बहता है। उनकी पत्नी जो ठीक से दस्तख़त भी नहीं कर सकती उसने सुबह आत्माराम जी को झिड़क दिया। ' वर्षो से देख रही हूँ, भूसे की तरह पिसते रहते हो, पर सरकारी गेंहू तक घर नहीं ला रहे। फुट गई मेरी किस्मत जो तुम संग ब्याही गई।' आत्मा राम जी भी चिल्ला पड़े ' जाओ तो अपने मायके, वहाँ तिजोरी खुली पड़ी है।'  दो साइन भी ठीक से नहीं कर सकती, और मुझे सीखा रही है। इसके नाज- नखरे उठाते- उठाते सारी जिंदगी खपा दी मैंने पर ये नहीं सुधरी। लॉकडाउन ने आत्माराम जी प्राइवेट स्कूल की नोकरी छीन ली, बच्चे अब ट्यूशन पढ़ने भी नहीं आते जिससे उनका घर का खर्चा चल रहा था। पहले वो सरकारी राशन को अपनी शान के खिलाफ समझते थे। अब उसी राशन के लिए तरस रहे है। क्योंकि उनके पास आधारकार्ड नहीं है। लॉकडाउन से पहले वो आधारकार्ड

कौन किससे ज्यादा प्यार करता है??

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  एक राजा और एक रानी थी। दोनो में एक बार शर्त लगती है कि दोनों में से ज्यादा प्यार कौन करता है राजा रानी से, या रानी राजा से। लेकिन दोनों ये तय नहीं कर पाते की कौन ज्यादा प्यार करता है। राजा ने सुन रखा था कि उनके पड़ोस में एक नवयुगल रहता है और दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते है। और उनके घर की बत्ती पूरी रात जलती रहती है कभी बुझती नहीं है। रात में राजा महल की छत पर रानी को ले गए और कहा देखो ये आदमी अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता है इसका मतलब आदमी हमेशा अपनी पत्नियों से ज्यादा प्यार करते है। तो रानी ने कहा नहीं आप गलत कह रहे है। पत्नियां हमेशा अपने पति से ज्यादा प्यार करती है। दोनों में बहस होने लगती है।  दोनों मंत्री के पास जाते है मंत्री कहता है एक उपाय है पता करने का कि दोनों में से कौन ज्यादा प्यार करता है। मैं कल रात उस आदमी के पास जाता हूँ और कहता हूँ कि रानी आपसे बहुत प्यार करने लगी है वो आपसे शादी करना चाहती है लेकिन एक शर्त है कल रात आप अपनी पत्नी का कत्ल कर दे और घर की सारी बत्तियां बुझा दे। इससे साबित हो जाएगा कि आप रानी से शादी के लिए तैयार है। इस पर रानी कहती है क्या बकवास क

सुसाइड

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  मकान मालिक उकता सा गया था। अपने किरायेदार से क्योंकि उसे अब तक अपने किरायेदार से किराया नहीं मिला था। मिलता भी कैसे वो अपनी नोकरी गंवा बैठा था लॉक डाउन में। किराए के लिए उसने साफ मना कर दिया था। कह दिया था उसने नोकरी लगते ही सबसे पहले आपका किराया दूंगा मैं आप मुझे 4 साल से जानते है। बस अभी थोड़ी मुसीबत में हूँ, आप मेरा यकीन कीजिये। मकान मालिक भी अच्छे थे सो मान गए। पर अब वो उससे उकता गए थे। इसलिए मकान खाली करवाना चाहते थे पर उन्हें कोई उपाय नहीं सूझ रहा था कि कैसे मकान खाली करवाये। दो दिन बाद किरायेदार ने सुसाइड कर लिया अपने कमरे में, ये उनको उसके दोस्त के आने पर पता चला। जब उसने दरवाजा नहीं खोला तो उन्होंने किसी तरह खिड़की खोल उसे आवाज लगाने की कोशिश की तो वो पंखे से झूलता दिखा उन दोनों को। पुलिस आई खूब छान-बीन हुई  पता चला वो कर्जे में डूबा हुआ था। उसने बहुत लोगो के पैसे खा रखे थे। लोग उसे फोन पर गालियां, धमकियां देते थे इसी से तंग आकर उसने सुसाइड कर लिया था। वो सोचते रह गए काश! समय रहते मकान खाली करवा लिया होता तो आज ये दिन नहीं देखना पड़ता। उनका मकान भी अब बदनाम हो चुका था सुसाइड की