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जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

खारा एहसास

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मन की दहलीज़ में विचारों का अंबार लगा है। खारे मोतियों की कतार में आंखे लाल हो गई। रंगीन विचार कब श्वेत हो गए पता ही न चला। कोमल मन आहत हो चुका है। गुजरे कल में रोता आज में मौन हो चुका है। खनकता स्वर बावला मन कब करवटें बदल  बीतें कल में खोया कुछ पता नहीं चला। मधुमास बीता फिर पतझड़ आया। कुछ एहसास श्वेत, कुछ एहसास पीले हो सूखे पत्तों संग उड़ गए रेतीले आसमान में। झुलसा एहसास झुलसा मन झुलसा तन शून्य को ताकता रह गया। एक विचार आते एक विचार जाते मन को खाई की सैर करा गए।

हंसी

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मैंने कहा फूलों से तो वो खिलखिला कर हंस दिए। कितना अच्छा गाना है कुछ याद आया इस गाने के बारे में। Hi मैं हूँ नीलम अग्रवाल आज इस हंसी पर एक कविता लिख रही हूं आप सब पढ़ियेगा जरूर और बताइएगा भी जरूर की कैसी लगी आपको ये कविता। ......हंसी...... अपने गम भुलाने को एक हंसी कानों तक फैल गई, आंखों के इर्द-गिर्द लकीरों में खो होंठो पर बहक गई। हंसी मानो देह के भीतर का शोर या मानो भीतर का आनंद। भीतर जैसे कुछ भरा-भरा कुछ खाली-खाली भीतर जैसे कोई बच्चा कभी रो कर हंस रहा हो तो कभी रोते-रोते हंस रहा हो। हंस-हंस सबको आकर्षित कर रहा हो। हंसना कितना अच्छा होता है। सारे विचार ठहर जाते है। अपने आप मे खो जाते है।। जापान में हंसते हुए बुद्ध होतेई की एक कहानी है। होतेई की जिंदगी का उद्देश्य ही बस हंसना था। वह एक स्थान से दूसरे स्थान, एक बाज़ार से दूसरे बाज़ार घूमता रहता। वह बाजार के बीचों-बीच खड़ा हो जाता और हंसने लगता- यही उसका प्रवचन था। उसकी हंसी सम्मोहक थी, एक वास्तविक हंसी, जिससे पूरा पेट स्पंदित हो जाता है। वह हंसते-हंसते जमीन पर लोटने लगता। लोग उसके आस-पास जमा हो जाते, और वे ...

ये क्या किया

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अंधेरे से ठीक पहले का उजास.. ढलती शाम में मिलती जैसे रात..। सुंदर कलाकृतियों में मिलते जैसे रंग..। मेरी अंदरूनी खुशी के तुम प्रेरणास्रोत हो। मेरी मुस्कुराहट का मूल्य शून्य था, तुमनें खरीद बहुमूल्य कर दिया। धैर्य धीरे-धीरे खत्म हो रहा था, तुमनें अपना समय मिला धैर्यवान कर दिया। मधुर संगीत सुनने को कान तरस गए थे, तुमनें अपनी बातों का संगीत मिला मौसम ख़ुशगवार कर दिया। मेरे फैसले में अपनी रजामंदी मिला मुझे अपना कर्जदार कर दिया। बोल तूने ये क्या किया!

आत्मविश्वास का जादू

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अगर आपकी योजना असफल होती है तो अपने विचारों को थोड़ा विराम दे व्यायाम करवाएं। जरूरी नहीं हर वक्त कुछ न कुछ सोचा जाए। जब कुछ समझ न आये तो कुछ वक्त उस काम  यूं ही  छोड़ दे। आप देखेंगे कि उस काम का कोई न कोई हल खुद ब खुद निकल आया है। आपका मस्तिष्क आपसे ज्यादा सजग है उसे बस एक संदेश भेज कर देखिए वो कैसे काम करता है। आत्मविश्वास वो नहीं हर काम को हाथ डाल आजमाया जाय आत्मविश्वास वो है जो काम की बारीकी को समझ किया जाता है। मतलब उस विषय के बारे में ज्ञान हासिल कर फिर वो काम कीजिये। फिर सफलता 99% होगी और असफलता सिर्फ 1% और आपका आत्मविश्वास बढ़कर दुगना हो जाएगा। अपनी खोखली मानसिकता से बाहर निकलिए जहाँ प्रश्न से पहले उत्तर ढूंढा जाता है। पहले प्रश्न ढूंढिए फिर उसका उत्तर। अक्सर उत्तर प्रश्न के अंदर ही छुपा रहता है। जोखिम हर काम में होता है। जहाँ जोखिम नहीं वहाँ सफलता भी नहीं याद रखिये। जिस प्रकार सड़क पर चलने में जोखिम है। लेकिन सड़क पर चले बिना आप आप न ऑफिस जा सकते है न घर वापस आ सकते है। मान लीजिए आपके सामने एक रेखा खींची हुई है। बस उस रेखा के सामने एक बड़ी रेखा ...

लफ्ज़ो के मोती: अजनबी कौन हो तुम......???

लफ्ज़ो के मोती: अजनबी कौन हो तुम......??? : तुम कौन हो नहीं जान पाई मैं सब जानकर भी लगता है। नहीं जान पाई मैं तुम्हें अजनबी तुम कौन हो बड़े अपने से लगते हो ढेरों बातें...

लफ्ज़ो के मोती: ख़त

लफ्ज़ो के मोती: ख़त : एक खत लिखा है, इत्र में भिगो मन की स्याही से। कोरे पन्नों पर, प्यार की डाल पर गुलाब खिला एक माला बनाई है। व्यस्त जिंदगी में ये विरा...

लफ्ज़ो के मोती: ख़त

लफ्ज़ो के मोती: ख़त : एक खत लिखा है, इत्र में भिगो मन की स्याही से। कोरे पन्नों पर, प्यार की डाल पर गुलाब खिला एक माला बनाई है। व्यस्त जिंदगी में ये विरा...

ख़त

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एक खत लिखा है, इत्र में भिगो मन की स्याही से। कोरे पन्नों पर, प्यार की डाल पर गुलाब खिला एक माला बनाई है। व्यस्त जिंदगी में ये विरासत लिखी है। सम्बन्धों की परिभाषा में एक अनाम रिश्ता लिखा है। सीमाओं से परे। कुछ पसंद कुछ नापसंद बातें लिखी है, मन के जाले साफ कर। मैं किस मिट्टी की बनी हूँ, मुझे खुद नहीं पता। चंद सवालों में पूरी कहानी और पूरी कहानी में चंद सवालों सी। निगाहों में कुछ प्रश्न प्रश्न ही बन कर रह गए। मैं खुद स्तब्ध हूँ, स्वीकार जिंदगी में अस्वीकार सी, किस पसोपेश में फंस गई। अपनी उदास जिंदगी में नीले रंग सी, सूरज की रौशनी में नहा कब हर दिशा बहक गई!!

जोड़ लफ्ज़ो का

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लफ्ज़ लिखते2 जाने कहाँ गुम हो जाती हूँ, कई बार मैं तुम बन जाती हूँ, तो कई बार सिर्फ लफ्ज़ शब्दों का जोड़ होती हूँ। कई बार टूटी कई बार जुड़ी हूँ। एक सफ़र की धूल थी, नए सफ़र पर चल पड़ी हूँ। देहरी के भीतर देहरी के बाहर कदम रख चल पड़ी हूँ। कुछ चुनिंदा शब्दों की माला गुथी है। हर पंक्ति में कुछ नई पक्तियां जोड़ एक रचना लिखी है। भोर की पहली किरण से ढलते शाम की लालिमा, रात्रि पहर तक कि हर बात लिखी है। कि कैसे पवन ने दौड़कर फूलों को गले लगाया, मैदान के उस पार से कैसे सूरज भाग कर पहाड़ी पर आया, कैसे शाम ढले चिड़ियाँ घर लौटी, कि कैसे चाँद ने आसमां पर कब्जा किया। तारों के जंगल में कैसे ख़्वाब भटके। हर बात में मन में विश्वास भर कोरे पन्नें पर फूल सी खिली।।

आपकी कीमत

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एक सभागार में स्पीकर ने अपनी जेब से दो हजार का नोट निकाला और हवा में लहराते हुए लोगों से पूछा,  'आपमें से कौन इसे पाना चाहता है?'  सभी के हाथ ऊपर उठे। उन्होंने नोट को तह करना शुरु किया और जमीं पर फेंका कि फर्श की धूल उस पर लग गई। उन्होंने धूल से सने नोट को उठाया और फिर पूछा। सभी हाथ ऊपर उठे। उन्होंने पूछा   'इस धूल से सने नोट को आप क्यों पाना चाहते है?'  आवाज आई, 'क्योंकि इसकी कीमत दो हजार रुपये है।' स्पीकर बोले  'यही हम है। यदि हम हर स्थिति में अपनी कीमत कायम रखते हैं, तो हमारी स्वीकार्यता कभी समाप्त नहीं होती।' अक्सर हम थोड़ी सी विपरीत परिस्थिति में अपने को कम आंकने लगते हैं। इंसान की कीमत तभी कम होती है जब वह स्वयं को कम मानना शुरू करता है। इसलिए खुद  की कीमत समझें और उसी के अनुरूप काम करें।

....स्त्री....

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#स्त्री एक स्त्री टुकड़ो में जीती पूरी मरती है। नहीं मरता तो उसका विश्वास कि वो जिंदा है। और लेती है सांसे टुकड़ो में। एक स्त्री टुकड़ो में जीती पूरी मरती है। अपनी ही देहरी में सिमटी ग़ैरों को बेजुबान लगती है। स्त्री तुम इतनी गूंगी क्यूँ हो? क्या तुम सच में मर गई या अभी भी जीवित हो? जैसी देखती हो वैसी ही हो न? स्त्री तुम ऐसी क्यों हो, सब समझ कर भी अनसमझ। भावों में बहती.. सच्चाई में मरती। फूल सी खिलती.. धूल में मिलती। हर ना में भी.. हाँ मिलाती सी। ये जीने का हुनर किससे सीखा तुमने? अपनी ही परिधि के चक्कर लगाती, अपने जिस्म से अनजान दुसरो के मन में मिलती। तुम ऐसी क्यों हो? एक स्त्री तब तक जीवित होती है, जब तक उसकी अस्थियां ही उसे चुभ न जाए! #Female A woman won in pieces She dies completely. If he does not die then his faith That he is alive And takes breath In pieces. A woman won in pieces She dies completely. Confined in my own body The non-residents feel unmatched. Why are you so dumb lady? Are you really dead or Are you still alive?...