बारीक़ रिश्तें.....
बारीक़ रिश्तों की गहरी वेदना समझौतों की डगर पर चलता सफ़र है। मुस्कान के मुखोटे ओढ़ दुनियादारी निभाता है। उम्र के हर पड़ाव पर, खुद को अकेला पाता है। पहचान को तरसता, वजूद को ढूंढता भीड़ में अपने तलाशता है। बारीक़ रिश्तों की वेदना..... कंटीले झाड़ पर ऊगी कसैले फूलों सी होती है। मधु में लिपटे दर्दीले जहर सी होती है। जिसे घूंट-घूंट पी इंसान, रोज मर-मर जीता है। बारीक़ रिश्तों की भोर. धुप में चल, छांव में रोती है। बारीक़ रिश्तें तस्वीरों में मुस्कुराते..... रद्दी कागज़ से उड़ कौने में वक्त बिताते है। वक्त के पायदान पर लुढ़क, शाख़ से टूटे पत्तो से भटकते है। बारीक़ रिश्तें जीवन की पाठशाला में पकते, अम्बर से गिरते तारों से, आश्चर्य-बिम्बों से सजते मन के कब्र में दफ़्न होते है!!