
आँखों के कोरो में आयी नमी की बूंद और उस बूंदों में समाते हमारे उलझे रिश्तो की डोर खुद में अपनापन समेटे खोखले रिश्ते ! रिश्तो की गरिमा जो मैं ढूंढने चली तो पाया कच्चे धागों में लिपटे कुछ नाजुक रिश्ते क्या ये रिश्ते इतने नाजुक होते है ? काँच की चूड़ी के जैसे रेत में उड़ गई बारिश की बूंदों के जैसे हम क्यों नहीं कर पाते है इसमे दोस्ती की मिलावट क्योंकि जहाँ दोस्ती होती है ! वहाँ सुखी घास में भी नमी भरे बदलो की उम्मीद जाग ही जाती है ! रजनीगंधा सी ख़ुशी आ ही जाती है ! 😊😊😊😊😊